Delhi Violence

दिल्ली हिंसा में हुई  मौतों का कौन है जिम्मेदार ?

CAA (नागरिकता संशोधन कानून) के विरोध में देश की राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा ने 40 से अधिक लोगों की जिंदगी को लील लिया। दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के दौरान देश की राजधानी में हुई इस प्रकार की हिंसा, भारत की छवि को किसी ना किसी प्रकार से दुनिया के सामने धुमिल करने का कार्य करती है। हालांकि सरकार ने इसके लिए अच्छी कोशिश की अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने देश की छवि धुमिल ना हो और सरकार काफी हद तक इसमें कामयाब भी रही। लेकिन बात यह है कि क्या दिल्ली की हिंसा को रोकने और दुनिया के सामने देश की छवि को उज्जवल करने की जिम्मेदारी केवल सरकार की है। देश के प्रति आम नागरिक और दिल्ली की सरकार एवं न्यायालय की कोई जिम्मेदारी नहीं है।     

क्यों हुई हिंसा
देश में CAA (नागरिकता संशोधन कानून) कानून को लागू ना करने को लेकर शुरु हुए विरोध प्रदर्शन ने कब हिंसा का रूप अख्तियार कर लिया, किसी को पता नहीं चला। हमारे देश में बेसक लोकतंत्र है और सभी को अपनी बात रखने की आज़ादी भी है। लोग सड़क पर बैठना और प्रदर्शन करने को अपना मौलिक अधिकार समझते है, लेकिन वह यह बात भूल जाते है कि मौलिक अधिकार की भी सीमाएं हैं अपने किसी अधिकार का इस्तेमाल करते वक्त किसी दूसर के मौलिक अधिकार का हनन करन भी गलत है। लोग सड़क को रोक कर उसे बंद कर दे रहे हैं, वह कहीं ना कहीं दूसरों के अधिकारों को बाधित कर रहे हैं सवाल यह भी है कि आखिर यह हिंसा क्यों ? प्रदर्शन करने वाले लोगों का कहना है कि CAA कानून मुस्लिम विरोधी है। यह कानून देश के मुसलमानों को बाहर करने के लिए है। इसके साथ ही विरोध प्रदर्शन में शामिल लगभग लोगों को CAA कानून के उद्देश्यों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। कुछ लोग तो ऐसे भी है जिन्हें यह भी नहीं पता कि वह प्रदर्शन में क्यों शामिल हुए है ?  खैर CAA कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन तो काफी दिनों से चल ही रहे थे, लेकिन अचानक से ऐसा क्या हो गया कि शांति से हो रहे प्रदर्शन ने रौद्र रूप ले लिया। कही ना कही यह सरकार की विफलता को भी दर्शाता है। अगर सरकार की मंशा ठीक होती तो शायद हिंसा में हुई मौतों को रोका जा सकता था। सरकार चाहती तो समय रहते लोगों को समझा बुझाकर की शांत करा सकती थी।


हिंसा की जिम्मेदारी किसकी ? 
इन सबके साथ सबसे बड़ा सवाल यह है कि सभी पार्टियां जब एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगी है तो देश की राजधानी में हुई इस हिंसा की जिम्मेदारी आखिरकार है किसकी ? जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते है ठीक उसी प्रकार इसके भी दो पहलू है, जिसमें पहली कानूनी तथा दूसरी नैतिक जिम्मेदारी है। यदि कानूनी जिम्मेदारी की बात करें तो यह पूरी तरह से गृह मंत्रालय की है, जो केंद्र सरकार के तहत आता है। दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने के चलते वहां के लिए संविधान में अलग से प्रावधान दिए गए हैं देश के संविधान में दिल्ली क विशेष रुप से अनुच्छेद 239 AA में शामिल किया गया है इस अनुच्छेद में दिल्ली की विधानसभा और दिल्ली सरकार की शक्तियों का जिक्र शामिल है इस अनुच्छेद में पूरी तरह यह बताया गया है कि दिल्ली विधानसभा राज्य और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है, लेकिन उसे भूमि, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है यदि इसे साफ और सीधी भाषा में समझें तो दिल्ली के लिए पुलिस और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है इसके तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय का साफ तौर पर यह जिम्मा बनता है कि वह दिल्ली में कानून व्यवस्था की स्थिति को बनाए रखे इन सबको ध्यान में रखते हुए अगर यह कहा जाएं कि गृह मंत्रालय ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी नहीं निभाया है तो यह गलत नहीं होगा।
गृह मंत्रालय द्वारा दिल्ली हिंसा की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दिल्ली विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को EVM से शाहीन बाग को करंट का झटका देने की बात कहते है। उस समय गृह मंत्री कहीं ना कहीं अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ाते नजर आ रहे थे। दिल्ली के शाहीन बाग में दो महीने से भी अधिक समय से सड़क को रोक कर बैठे लोगों को समझाकर या बलपूर्वक वहां से हटाने का काम पुलिस का है और दिल्ली की पुलिस सीधे तौर पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आती है उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद इलाके में जब महिलाओं ने जबरन मेट्रो स्टेशन के नीचे बैठना शुरू किया था, तो उन्हें उसी वक्त रोकने की जिम्मेदारी पुलिस की थी इसके साथ ही जब कपिल मिश्रा जैसे बीजेपी के नेता CAA का विरोध करने वाले लोगों पर खुद कार्रवाई करने की चेतावनी दे रहे थे, उन्हें तभी रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने की जिम्मेदारी भी पुलिस की थी, लेकिन पुलिस ऐसा करने में विफल रही खैर ये तो रही कानूनी जिम्मेदारी की बात, जो निभाने में केंद्र सरकार विफल रही।
अब बात नैतिक जिम्मेदारी भी करते है। दिल्ली में 70 में से 62 सीटें जीतकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी की सरकार हमेशा सिर्फ यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती कि कानून व्यवस्था उसके हाथ में नहीं है दिल्ली में जिस पार्टी को दिल्लीवासियों का समर्थन हासिल है। 90 फ़ीसदी विधायक जिस पार्टी के हैं क्या इसकी और उसके विधायकों की यह जिम्मेदारी नहीं बनता कि बढ़ते हिंसा की स्थिति को रोकने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाए जाएं ? क्या मुख्यमंत्री और दोबारा चुनाव जीते विधायकों की जिम्मेदारी नहीं बनती कि लोगों को हिंसा रोकने के लिए समझाने को आगे आएं?


किसकी क्या है जिम्मेदारी 
वैसे तो दिल्ली में कानून व्यवस्था केंद्रीय गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी है लेकिन किसी भी मामले में आरोपी पर मुकदमा चलाने का कार्यभार यानी प्रॉसीक्यूशन डिपार्टमेंट दिल्ली सरकार के पास है दिल्ली की सरकार के द्वारा ही सरकारी वकीलों की नियुक्ति की जाती है देशद्रोह जैसे संगीन अपराध में मुकदमे की अनुमति देने का अधिकार भी दिल्ली सरकार को प्राप्त है दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारत विरोधी नारे लगाने वाले तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की फाइल अभी भी दिल्ली सरकार के पास है, जिस पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने के लिए दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के इजाजत का इंतजार है। लेकिन दिल्ली की सरकार ने शायद राजनीतिक कारणों से इस फाइल को दबाकर रखा है इसमें ऐसा भी नहीं है कि कन्हैया पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार को इजाजत देना जरूरी हो राज्य सरकार अगर ठीक समझे तो अनुमति देने से मना भी कर सकती है लेकिन इसके बावजूद उस फाइल को बिना कोई फैसला लिए अपने पास रोककर रखना दिल्ली सरकार द्वारा कानून-व्यवस्था को लेकर चिंता जताने पर भी कहीं ना कहीं सवालिया निशान खड़े करता है।

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